मैनपुरी | वर्ष 1981 के बहुचर्चित देहुली जनसंहार मामले में मैनपुरी जिले की विशेष अदालत ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीन दोषियों को मृत्यु दंड दिया। इस नरसंहार में 24 निर्दोष दलितों की नृशंस हत्या की गई थी, जिनमें छह माह और दो वर्ष के मासूम बच्चे भी शामिल थे।
सरकारी अभियोक्ता के अनुसार, 18 नवंबर 1981 को डकैतों के एक गिरोह ने पुलिस की वर्दी में गांव पर हमला किया और निर्दोष ग्रामीणों पर कहर बरपाया। चार दशकों तक चली कानूनी प्रक्रिया के उपरांत विशेष न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने इस घिनौने अपराध के लिए कप्तान सिंह (60), रामपाल (60) और राम सेवक (70) को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई।
चार दशक की लंबी न्यायिक प्रक्रिया
इस हृदयविदारक घटना के बाद से न्याय के लिए संघर्ष का यह सफर अत्यंत लंबा और कठिन रहा। मामले की सुनवाई के दौरान 17 आरोपियों में से 14 की मृत्यु हो चुकी है, जिससे मुकदमे में कई बार बाधाएं आईं। लेकिन आखिरकार, पीड़ित परिवारों के लिए इंसाफ की राह प्रशस्त हुई।
जनसंहार की भयावहता
घटना के विवरण के अनुसार, 18 नवंबर 1981 की शाम को पुलिस की वर्दी में आए 17 डकैतों ने देहुली गांव में आतंक मचा दिया। बेरहमी से अंधाधुंध गोलियां चलाई गईं और निर्दोष ग्रामीणों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस बर्बरता ने पूरे क्षेत्र को दहला दिया था और दशकों तक यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में उलझा रहा।
न्याय की जीत
लंबे समय तक चले इस मुकदमे का फैसला उन पीड़ित परिवारों के लिए एक देर से मिला लेकिन महत्वपूर्ण न्याय है, जिन्होंने इस भयावह नरसंहार में अपनों को खो दिया था। इस निर्णय से यह संदेश गया है कि न्याय देर से ही सही, लेकिन मिलता अवश्य है।
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