आर्य समाज मंदिर में वैदिक विधि से विवाह वैध: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

प्रयागराज। हिंदू महिला और पुरुष के बीच आर्य समाज मंदिर में वैदिक विधि से संपन्न विवाह को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वैध करार देते हुए स्पष्ट किया है कि विवाह का स्थान—चाहे मंदिर हो, घर हो या खुला मैदान—विवाह की वैधता को प्रभावित नहीं करता।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल का महत्वपूर्ण निर्णय

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने महाराज सिंह नामक याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए दी, जिसने दहेज उत्पीड़न के एक मामले को रद्द करने की गुहार लगाई थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि आर्य समाज मंदिर में उसका विवाह वैध नहीं है क्योंकि वह हिन्दू रीति से नहीं हुआ और प्रमाण पत्र भी फर्जी है।


विवाह की विधियों पर न्यायालय की दृष्टि

न्यायालय ने कहा कि आर्य समाज मंदिर में विवाह की प्रक्रिया—जिसमें कन्यादान, सप्तपदी, वैदिक मंत्रों के उच्चारण और सिंदूरदान शामिल हैं—1955 के हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के अनुरूप है। इस प्रकार यह विवाह विधिसम्मत और मान्य है।

आर्य समाज का प्रमाण पत्र: रद्दी नहीं, साक्ष्य के योग्य दस्तावेज

हालांकि अदालत ने यह भी जोड़ा कि आर्य समाज द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाण पत्र मात्र विवाह की वैधता को कानूनी शक्ति नहीं देता, लेकिन यह साक्ष्य अधिनियम, 2023 के तहत सुनवाई के दौरान विधिपूर्वक साबित किया जा सकता है।

पिछले निर्णयों से तुलना और स्थिति स्पष्ट

याचिकाकर्ता ने आशीष मौर्य बनाम अनामिका धीमान के एक पूर्व मामले का हवाला देते हुए विवाह को अवैध ठहराने की कोशिश की थी। उस मामले में खंडपीठ ने कहा था कि केवल पंजीकरण विवाह को वैध नहीं बनाता। मगर इस ताजे फैसले में न्यायालय ने वैदिक प्रक्रिया को विवाह की वैधता का केंद्र बिंदु मानते हुए पूर्व मामले से अंतर स्पष्ट किया।


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