जबलपुर। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के ओबीसी विभाग के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व प्रवक्ता टीकाराम कोष्टा ने आरोप लगाया है कि प्रदेश की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार न्यायालयों के आदेशों की आड़ में ओबीसी वर्ग को उसके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने की एक गहरी साजिश रच रही है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार, जो कमलनाथ के नेतृत्व में थी, ने प्रदेश की 50% ओबीसी जनसंख्या को 14% से बढ़ाकर 27% आरक्षण देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था। लेकिन, सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा के सहानुभूति रखने वाले वकीलों ने इस फैसले पर रोक लगाने के लिए न्यायिक गलियारों में जानबूझकर याचिकाओं की बाढ़ ला दी।
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कांग्रेस नेता टीकाराम कोष्टा |
कांग्रेस नेता टीकाराम कोष्टा का कहना है कि कमलनाथ सरकार ने वैधानिक रूप से अधिनियम बनाकर यह आरक्षण लागू किया था, जिसे न्यायपालिका ने कभी स्थगित नहीं किया। इसके बावजूद, वर्तमान भाजपा सरकार पिछले छह वर्षों से तथाकथित न्यायिक प्रक्रियाओं का बहाना बनाकर 27% आरक्षण को लागू करने से परहेज़ कर रही है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ प्रतीत होता है।
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में 79 याचिकाएं लंबित थीं, और जब मामले की सुनवाई अंतिम चरण में थी, तब सरकार ने सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित करवा दिया — एक ऐसा कदम, जिसने सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह उल्लेखनीय है कि अदालत ने कहीं भी इस अधिनियम पर रोक नहीं लगाई है, फिर भी हजारों चयनित अभ्यर्थी नियुक्ति पत्र के लिए प्रतीक्षारत हैं, जबकि सरकार दोहराती है कि वह 27% आरक्षण की पक्षधर है।
टीकाराम कोष्टा के साथ कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेता जैसे अलीम मंसूरी, पंकज पटेल, विजय अग्रवाल, डॉ. मोइन अंसारी, लखन श्रीवास्तव, रविंद्र कुशवाहा, पवन नामदेव, अशोक चौधरी, मामूर गुड्डू, राजा खान और धर्मेंद्र कुशवाहा ने संयुक्त रूप से सरकार से मांग की है कि ओबीसी समुदाय को उनका 27% आरक्षण अविलंब प्रदान किया जाए। अन्यथा, सरकार को एक व्यापक जन आंदोलन का सामना करना पड़ सकता है।
यह पूरा घटनाक्रम इस बात को उजागर करता है कि सत्ता में बैठी ताकतें कैसे संवैधानिक व्यवस्थाओं को बाधित कर, बहुसंख्यक वर्ग के अधिकारों का हनन कर सकती हैं — और यह एक ऐसे समय में हो रहा है, जब लोकतंत्र की नींव और भी सशक्त होनी चाहिए।
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