त्वरित टिप्पणी : नगर निगम बना कॉरपोरेट? ‘पब्लिक सर्विस’ की जगह ‘प्रॉफिट मॉडल’ हावी!


दयाल चंद यादव (एमजेसी)  संपादक, अक्षर सत्ता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की नीति को समर्थन देने के नाम पर जबलपुर नगर निगम की मेयर इन काउंसिल (MIC) की बैठक में बड़े-बड़े निर्णय पारित किए गए। परंतु इन निर्णयों के पीछे छिपी कार्यशैली ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है – क्या नगर निगम अब जनसेवा की संस्था नहीं, बल्कि किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाया जा रहा है?

महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में एक ओर ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के समर्थन में प्रस्ताव पास किया गया, तो वहीं दूसरी ओर शहर की बुनियादी सेवाओं को भी प्राइवेट मॉडल में ढालने की मुहिम छेड़ दी गई।

श्रीनाथ की तलैया में “प्रसादम चौपाटी” – सौंदर्यीकरण या कमाई का साधन?

महापौर ने बड़े गर्व से बताया कि श्रीनाथ की तलैया में राष्ट्रीय स्तर की चौपाटी ‘माँ नर्मदा प्रसादम मार्केट’ के रूप में विकसित की जाएगी, और इसके लिए जल्द ही निविदा जारी होगी। सवाल ये उठता है कि क्या यह परियोजना वास्तव में जनसुविधा को ध्यान में रखते हुए बनाई जा रही है या फिर ये भी एक “कमर्शियल जोन” बनाने का प्रयास है, जहाँ आम नागरिक की पहुंच सीमित हो जाएगी?

पेड पार्किंग का जाल – सुविधाएं या शुल्क वसूली की स्कीम?

जबलपुर के 62 स्थानों पर पेड पार्किंग की व्यवस्था की स्वीकृति को भी निगम ने “सुविधा” के तौर पर प्रस्तुत किया। लेकिन हकीकत यह है कि इस योजना के तहत दो पहिया और चार पहिया वाहन चालकों से घंटों के हिसाब से शुल्क वसूला जाएगा – एक दिन के लिए 5 से 40 रुपए तक, और मासिक पास के लिए 300 से लेकर 2500 रुपए तक!

क्या यह सुविधा है या आम जनता की जेब में सेंध? एक सार्वजनिक संस्था आखिर क्यों निजी कंपनी की तरह शुल्क मॉडल अपनाकर लाभ कमाने की होड़ में है?

ग्राम कठौंदा में व्यापारियों को भूमि आवंटन – कौन सा जनहित?

बैठक में ग्राम कठौंदा में व्यापारियों को व्यवस्थापन के तहत भूमि आवंटन करने जैसे प्रस्ताव भी पास किए गए। इन फैसलों को पारदर्शिता और जरूरत के तराजू पर कितना तौला गया, यह स्पष्टीकरण नगर निगम की ओर से नहीं दिया गया।

स्वच्छता में नंबर 1 बनने का दावा – लेकिन किस कीमत पर?

महापौर का दावा है कि जबलपुर इस वर्ष स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 में प्रथम स्थान प्राप्त करेगा। सवाल यह नहीं है कि हम अव्वल आएं या नहीं, सवाल यह है कि जो विकास दिखाया जा रहा है, वह नागरिकों के जीवन को कितना सुगम बना रहा है और कितना बोझ बढ़ा रहा है?

नगर निगम का मूल उद्देश्य होता है जनसेवा – सड़क, सफाई, जल आपूर्ति, प्रकाश जैसी बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करना। लेकिन जब ये संस्थाएं अपने फैसलों में लाभ कमाने की होड़ में उतर जाती हैं, निविदाएं और शुल्क आधारित योजनाएं प्राथमिकता बन जाती हैं, तो यह सोचने का वक्त आ जाता है कि क्या हमारा नगर निगम भी अब “कॉरपोरेट कल्चर” की राह पर है?

शहर के नागरिकों को इन निर्णयों की गहराई को समझना होगा, और सवाल पूछने होंगे – वरना एक दिन हमारा शहर “पब्लिक” के लिए नहीं, सिर्फ “प्रॉफिट” के लिए चलेगा।

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