सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी: यौन हिंसा के मामलों में न्यायाधीशों की अनुचित टिप्पणियों पर जताई गहरी चिंता

नई दिल्ली। महिलाओं के प्रति यौन अपराधों से संबंधित मामलों में न्यायिक टिप्पणी की मर्यादा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक सशक्त संदेश दिया। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस विषय पर स्वत: संज्ञान लेते हुए स्पष्ट किया कि न्यायाधीशों को इस प्रकार के संवेदनशील मामलों में अनुचित, पीड़िता को दोषी ठहराने वाली टिप्पणियों से बचना चाहिए।


यह प्रतिक्रिया इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस निर्णय के संदर्भ में आई है, जिसमें बलात्कार के एक आरोपी को जमानत देते समय न्यायाधीश ने टिप्पणी की थी कि "पीड़िता ने खुद ही परेशानी को बुलावा दिया और इसके लिए वही उत्तरदायी है।" सुप्रीम कोर्ट ने इस वक्तव्य पर गहरा ऐतराज़ जताया और इसे न्यायिक संवेदनशीलता के मानकों से परे बताया।

शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी न केवल न्यायाधीशों की भूमिका की मर्यादा पर रोशनी डालती है, बल्कि महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में पीड़ितों के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि न्यायालयों को सामाजिक पूर्वाग्रहों से मुक्त रहते हुए ऐसे मामलों की सुनवाई करनी चाहिए, ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके और न्याय प्रणाली पर जनता का विश्वास बना रहे।

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