अमेरिकी टैरिफ: आपदा में अवसर विश्वगुरु बनने का


लेखक - सुसंस्कृति परिहार 

जब पूरी दुनिया में अमेरिकी टैरिफ को लेकर हाहाकार है तब डोनाल्ड ट्रम्प अपनी असलियत पर उतर आया है। अशोभनीय भाषा का ऐसा इस्तेमाल तानाशाह ही कर सकता है। आशा इस बात की है कि अमेरिकी अवाम इन तमाम हरकतों का खुलकर विरोध कर रही है। जो वहां अपने मताधिकार पर हो रहे अनर्थ की सिर्फ़ बात नहीं करते बल्कि अपने लोकतांत्रिक हक की पुष्टि करते हैं। अवाम का यह विरोध तानाशाह को कभी भी उखाड़ देने की क्षमता रखता है।

अमेरिकी टैरिफ ने गलती से सही बैठे ठाले भारत को आपदा में अवसर दे दिया है, जब भारत इस मामले में विकासशील देशों और तीसरी दुनिया के देशों का नेतृत्व कर विश्व गुरु बन सकता है। लेकिन पिछले दस सालोँ में भारत की बदली हुई विदेश नीति ने भारत के विश्व गुरु बनने के हर मौके को गवां दिया है। अमेरिका और चीन भारत के कभी दोस्त नहीं हो सकते इस बात को विदेश नीति नियंताओं को अच्छी तरह समझ लेना होगा। दोनों से दूर की ;राम राम' ही अच्छी है।  

जैसा कि इस दौरान साफ़ दिखाई दे रहा है कि सारे विकसित और विकासशील राष्ट्र अमेरिकी टैरिफ का जोरदार विरोध कर रहे हैं किंतु हमारा दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश इस समय मौन धारण किए हैं। यह हमारी जनशक्ति का घोर अपमान है। जबकि पडोसी राष्ट्र चीन लगातार अमेरिका की धमकियों से निपटने की तैयारी में लग चुका है। अमेरिकी टेरिफ के जवाब में जब चीन ने भी उतना ही टेरिफ लगाने की घोषणा की तो डोनाल्ड ट्रंप ने अपने ट्रुथ सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा, "ये अपनी कंपनियों को अमेरिका में लाने का बेहतरीन समय है, जैसे एप्पल और दूसरी कंपनियां कर रही हैं। ऐसा आप करोगे तो आप पर ज़ीरो टैरिफ़ लगेगा और तुरंत सभी तरह के अप्रूवल मिलेंगे। इंतज़ार ना करे, फ़ौरन क़दम उठाएं." मगर प्रत्युत्तर  ना मिलने की स्थिति में ट्रम्प ने चीन पर 104%टेरिफ की घोषणा कर दी है। तब से चीन का रुख ख़ामोश भारत की ओर गया है। हालांकि चीन और भारत के सम्बन्ध अंदरूनी तौर पर खट्टे हैं। लेकिन गलवान घाटी के अलावा सीमावर्ती ज़मीन पर चीन ने जिस तरह से सर्वसुविधायुक्त गांव का निर्माण किया है उस पर भारत ने लेशमात्र आपत्ति नहीं जताई है। इससे चीन का हौसला बढ़ा है और वह चिकिन नैक के ज़रिए बांग्लादेश समुद्र तट तक जाने की  तैयारी में है। पिछले दिनों बांग्लादेश के राष्ट्रपति यूनुस के साथ बातचीत में इस बात की पुष्टि हुई है। लगता तो ऐसा है उसने अमेरिका की तरह भारत की कमज़ोरी को भांप लिया है और अब एक नई चाल के तहत अमेरिका के खिलाफ भारत को तैयार करने में लगा है।

पिछले दिनों चीन के विदेश मंत्री वांग वी ने कहा है कि ड्रैगन और हाथी एक साथ मिलकर नचाने के लिए  नया काम कर रहे हैं। चीनी दूतावास से भी अमेरिकी टैरिफ पर व्यापार और आर्थिक सम्बंधों के सुधार की बात भी सामने आई है। इस दौरान चिकिन नेक पर हुई चर्चा को भी खारिज किए जाने के संकेत मिले हैं।

तो क्या ट्म्प के ख़िलाफ़ भारत जाकर चीन से नए रिश्ते बनाएगा। अभी भारत की इस बात पर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। लगता है भारत चोरी चुपके-चुपके चीन से उम्दा सम्बन्ध रखे है किंतु भीतर-भीतर उसके चीनी हिन्दी भाई-भाई से निश्चित डरा हुआ होगा। इसलिए इस रिश्ते के सुधरने के आसार कम नज़र आते हैं किंतु अमेरिकी धमकियों से डरे भारत को चीन भी विवश कर सकता है। चीन बड़ी ताकत है और ट्म्प का भरोसा छिन्न-भिन्न हुआ है।

बड़ी विकट स्थिति में इस वक्त भारत फंसा हुआ है। एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ़ खाई है इसलिए ख़ामोशी बरती जा रही है। उधर अमेरिका में पढ़ रहे भारतीय छात्रों पर ट्म्प ने नई सख़्ती लागू कर दी है। बेड़ियों में जकड़े वापसी करते भारतीयों की खबरें नहीं आ रही क्या हुआ। उनके साथ पता नहीं। आगे और क्या होता है समझ से परे है। 

लेकिन यह तय है बिगड़ैल तानाशाह अपनी कब्र खोदने में लगा है। आज स्वर्णिम अमेरिका की ज़द में अपने देश को भी बर्बाद करने तुला है। सारी दुनियां में उसके टैरिफ का विरोध है किंतु जब तक दुनिया के तमाम पीड़ित मुल्क एक नहीं होते और उन्हें उचित नेतृत्व नहीं मिलता है, तब तक ये विकट संकट बढ़ेगा। भारत की ख़ामोशी से देश शर्मिंदा हैं क्योंकि अब तक भारत ने गौरवपूर्ण तरीके से दुनिया को हमेशा नेतृत्व दिया है। फिलहाल अब इस तरह की उम्मीद नहीं है। जहां तक चीन का सवाल है वह भी अधिनायकवाद की ओर अग्रसर है। ऐसी स्थितियों में यूरोपीय देशों से ही आशा की किरण इस अंधियारे से निजात दिला सकती है। बशर्ते भारत भी चुप्पी तोड़े।

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